AABSLM

हमारी साइट में अपने समाचार सबमिट के लिए संपर्क करें

कैसा सुहाना बचपन मेरा


                   गौरव 'गम्भीर'
कैसा सुहाना बचपन मेरा
फिर रह रह याद आता है

कभी कभी अब भी दिल मेरा
बच्चा बनने को चाहता है

याद आती हैं वो मस्ती वो उमंग
जब हम छतों पे उड़ाते थे पतंग

याद आती है वो दोस्तों के साथ
गली गली जमाना धाक

याद आती है वो सड़कों पे
बाइक लेके दौड़ जाना

वो उन चाय की टिबरियों पे 
लड़ना और झगड़ना

उन छोटी छोटी बातों पे
रूठना और मनाना

साथ साथ कॉलेज के कैंटीन में हुड़दंग मचाना
मैनेजमेंट के लोगों को छेड़ना और सताना

अब तो सिर्फ रह गयी सिर्फ यादें उनकी
अब सिर्फ रह गयी बातें उनकी

अब तो दिल चाहता है फरिश्ता बन जाऊ
एक बार फिर बच्चा बन जाऊ

📝 गौरव 'गम्भीर'   गोरखपूर

निवेदन :- अगर आपको लगता है की ये लेख किसी के लिए उपयोगी हो सकता है तो आप निसंकोच इसे अपने मित्रो को प्रेषित कर सकते है