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बातें जो कह न सका तुझसे वो कैसे तुझे बताऊँ


कविता 

बातें जो कह न सका तुझसे
वो कैसे तुझे बताऊँ
लिखूँ या तू कहे तो पड़ के सुनाऊँ

लिखने बैठा तो कलम रूठ गयी
कही, क्या मुझसे भी प्यारा है तुझे और कोई
हाथ जोड़ पैर पड़ा
एक न मेरी मानी वो
बहुत समझाया उसे पर
करती अपनी मनमानी वो
मैंने कहा, तू ही तो है मेरी प्यारी
पर क्या करूँ
है वो मेरी राजदुलारी 
उसने कहा ठीक है कह दे
उसे दिल की बात अपने 
शब्दों में पिरो कर ज़ज़्बात अपने
बातें जो कह न सका तुझसे....

लिखने जो बैठा तो अब शब्द रूठ गए
कुछ समझ न आया तुझे बताने के सपने क्यू टूट गए
शुरुआत करूँ तो करूँ कहाँ से
फिर याद आया पहली मुलाकात
का वो पल
जैसे बीता हो वो लम्हां अभी कल
देखा था जैसे ही मैंने
सुंदर निश्छल कुमारी को
दिल हार बैठा तुरंत ही पराग में उस कुमारी को
आगे क्या हुआ अब लफ़्ज़ न मिल रहे
शायद दिल ही दिल में हम दोनों
एक दूसरे के हो रहे
बातें जो कह न सका तुझसे...

सोचा चलो अल्फ़ाज़ों में पिरो के तुझे बताऊँ
पर बीती मुझ पर कैसे तुझे समझाऊँ
बोलने चला तो पीहू रूठ गए
छोड़ साथ मेरा मुड़ वो चले गए
कहा मुझ पीहू से कौन प्यारा तुझे
कौन है वो जिससे होती है इतनी ईर्ष्या मुझे
मैंने कहा, प्रिय प्रिया प्रियतम है मेरी वो
जिससे कहूँ तुझ जैसी पीहू उस कुमारी को

दिल के ज़ज़्बात शायद आज दिल मे ही रह जाएंगे
ये रूठने मनाने के चक्कर मे हम शायद कुछ न कह पाएंगे
फिर कभी तुझे इत्मिनान में
अब मिल के अपने दिल का हाल सुनाएंगे
शायद आज दिल के ज़ज़्बात दिल मे ही रह जाएंगे
बातें जो कह न सका तुझसे...

📝 गौरव 'गंभीर 'जिला प्रभारी abslm  
 गोरखपूर
     8789886702

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