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तंबाकू गंभीर बीमारियों को जन्म देता है




डॉ. बी.एम. श्रीवास्तव

यूँ तो यह कोई नई जानकारी नहीं है कि तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन गंभीर बीमारियों को जन्म देता है। लेकिन तंबाकू से होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित है

फेफड़ों की बीमारी

ब्रोंकाइटिस और एम्फीसेमा ऐसी बढ़ने वाली बीमारियाँ हैं जो धूम्रपान करने वालों को होती हैं। ये बीमारियाँ कभी ठीक नहीं होती। इनकी वजह से साँस लेना दुश्वार होता चला जाता है। फेफड़ों में रुकावट के कारण साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। ाढाsनिक ऑब्स्ट्रेक्टिव लंग डिसीज (सीओएलडी) ऐसी बीमारी है, जो कभी भी धूम्रपान से दूर रहने वालों को नहीं होती। इस बीमारी से मरने वालों में 80 प्रतिशत धूम्रपान के कारण मरते हैं। निमोनिया धूम्रपान करने वालों को होने वाली एक आम बीमारी है, जो अक्सर घातक साबित होती है।

कोरोनरी हार्ट डिसीज

धूम्रपान करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही उच्च रक्तचाप की समस्या भी खड़ी हो जाती है। धूम्रपान करने वालों को दिल के दौरे का जोखिम दूसरों की तुलना में तीन गुना अधिक होता है।

पैरों की नसों में रुकावट

जो लोग धूम्रपान करते हैं उनके पैरों की नसों में थक्के की रुकावट आने का जोखिम 16 गुना अधिक होता है। जो मरीज पैरों की नसों में थक्कों की रुकावट के प्रारंभिक चिन्हों को नजरअंदाज करते हैं उन्हें गैंगरीन होने की आशंका अधिक रहती है।

दिमाग का दौरा

दिमाग के दौरे से मरने वालों में 11 प्रतिशत मरीज धूम्रपान करने वाले रहे हैं। जो 20 या इससे अधिक सिगरेट या बीड़ी प्रतिदिन पीते हैं उन्हें दिमागी दौरा पड़ने की आशंका दूसरों के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक रहती है।

फेफड़े का कैंसर

दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे बड़ा आँकड़ा फेफड़े के कैंसर का है। इसमें 80 प्रतिशत मौतें धूम्रपान की वजह से होती हैं। जैसे-जैसे प्रतिदिन सिगरेट पीने का आँकड़ा बढ़ता जाता है वैसे-वैसे फेफड़े का कैंसर होने की आशंका बढ़ती जाती है। जो लोग युवावस्था में धूम्रपान शुरू करते हैं उन्हें फेफड़े के कैंसर की आशंका अधिक होती है।

एक अध्ययन के मुताबिक जिन्होंने 15 साल की उम्र या उससे पहले धूम्रपान करना शुरु किया है उन्हें फेफड़े के कैंसर का जोखिम उन लोगों की बनिस्बत अधिक होता है जिन्होंने 20 साल की उम्र के बाद धूम्रपान शुरू किया है। मुँह के कैंसर के 90 प्रतिशत मरीज या तो धूम्रपान करते थे या फिर किसी रूप में तंबाकू खाते थे।
नशा करने वालों को कोई न कोई बहाना चाहिए होता है। खुशी हो या गम वे हर स्थिति में नशे का बहाना गढ़ लेते हैं। बात चाहे सिगरेट की हो या शराब की फर्प नहीं पड़ता, दोनों ही नशे हैं। सिगरेट पूँकने वाले भी मौके और बहाने के इंतजार में रहते हैं।

मूड ठीक नहीं है तो सिगरेट, मूड अच्छा है तो सिगरेट, टाइम पास करना है तो सिगरेट और व्यस्तता ज्यादा है तो भी सिगरेट! लेकिन, चंद मिनटों की है मुँह से धुआँ उड़ाने की लत अब जानलेवा बन गई है।
पूरी दुनिया में इस बात पर चिंता की जाने लगी है कि आदत से मजबूर लोगों को इस लत से कैसे निजात दिलाई जाए! लेकिन, इस फा को धुएँ में नहीं उड़ाया जा सकता, क्योंकि कुछ तथ्य मामले की गंभीरता का खुलासा कर रहे हैं।

तंबाकू उद्योग के विरोध के बावजूद 27 जनवरी 2005 को "धूम्रपान विरोधी संधि" लागू की गई थी। भारत, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 57 देशों में इस संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी।
 संधि के तहत पाँच साल में इन देशों को तंबाकू के विज्ञापन, सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध और इसे बढ़ावा देने के प्रयोजनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना थी। लेकिन अब तक इस दिशा में गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाए गए।अमेरिका समेत 51 देशों ने तब इस तरह की किसी भी संधि की पुष्टि नहीं की। संधि की पुष्टि करने वाले देशों में वे ही सिगरेट बेची जा सकेंगी जिनके पैकेट पर चेतावनी लिखी होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी तंबाकू पर नियंत्रण की रूपरेखा तैयार की। इसे "पेमवर्प कन्वेंशनल आन टोबैको कंट्रोल" कहा गया है। संगठन ने चबाए जाने वाले, सूँघे जाने वाले तंबाकू उत्पादों तथा हुक्कों में उपयोग किए जाने वाले तंबाकू को भी नियंत्रण में लेने की माँग की है।

एक सर्वे के मुताबिक योरप के 86 फीसद लोग दफ्तरों और सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध करने के पक्ष में हैं। 61 फीसद लोग शराबखानों में भी धूम्रपान पर पाबंदी लगाना चाहते हैं।
किशोरावस्था में ही सिगरेट या बीड़ी को मुँह से लगाते ही स्वास्थ्य संबंधी कई जोखिम भी साथ हो लेते हैं। सबसे पहला असर श्वसन प्रणाली पर पड़ता है। यहीं से निकोटीन की लत की शुरुआत भी हो जाती है।
इस उम्र में धूम्रपान शुरू करने का एक और बड़ा खतरा यह है कि जो किशोर नियमित रूप से कुछ अर्से तक इसे पीने लगते हैं वे वयस्क होने पर भी अपनी आदत पर कायम रहते हैं।

धूम्रपान करने वालों के फेफड़े हमेशा उन लोगों से कम काम करते हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। धूम्रपान करने वाले जिन वयस्कों को दिल की बीमारी घेरती है उसकी नींव किशोरावस्था में किए गए धूम्रपान के दौरान ही रखी जाती है। युवावस्था में गले पड़ी धूम्रपान की लत न तो शरीर ही ठीक रहने देती और न ठीक से काम करने देती है।जो युवा धूम्रपान नहीं करते उनकी तुलना में धूम्रपान करने वालों की रेस्टिंग हार्ट बीट हमेशा अधिक पाई जाती है।

फेफड़े के कैंसर का जोखिम भी युवावस्था में धूम्रपान करने वालों को दूसरों की तुलना में अधिक होता है। धूम्रपान करने वाले युवाओं की साँस जल्दी उखड़ जाती है। उन्हें दूसरे युवाओं की अपेक्षा बलगम भी अधिक बनता और निकलता है। धूम्रपान करने वाले युवाओं में शराब की लत लगने का जोखिम तीन गुना अधिक होता है। इसकी आशंका आठ गुना अधिक होती है कि वे गाँजे का सेवन भी शुरू कर दें। 22 गुना आशंका रहती है कि वे कोकीन का उपयोग भी करने लगेंगे।फिलहाल अध्ययनों से पता चला है कि पुरुषों में 50 प्रतिशत तथा महिलाओं में 20 प्रतिशत कैंसर तंबाकू के कारण ही होता है। धूम्रपान करने वाले 50 प्रतिशत लोग इसी वजह से दम तोड़ देते हैं। 25-69 के आयु समूह में मरने वालों में 25 प्रतिशत धूम्रपान के कारण मर जाते हैं। धूम्रपान करने वालों को टीबी के कीटाणू लगने का जोखिम दूसरों की बनिस्बत चार गुना अधिक होता है।




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