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जेनरिक दवाओं के संदर्भ में निर्देश





भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (पेशेवर व्यवहार, आचार और नैतिक) नियमन, 2002 के चिकित्सकीय व्यवहार संहिता के तहत चिकित्सकों के कर्तव्यों और दायित्वों का वर्णन किया गया है। इसके तहत यह प्रावधान है कि प्रत्येक चिकित्सक को जहां तक संभव हो वहां तक मरीजों को जेनरिक दवाएं देनी चाहिए और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दवाओं का उचित उपयोग हो। इन नियमनों में इन प्रावधानों का निर्दिष्ट अवधि तक उल्लंघन करने वाले चिकित्सकों के पंजीकरण को समाप्त करने की बात भी है। किसी अनैतिक प्रलोभन के कारण औषधि कंपनियों (महंगी ब्रांडेड) के उत्पादों को प्रोत्साहित करने वाले कुछ चिकित्सकों के ऐसे व्यवहार से निपटने के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद ने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (पेशेवर व्यवहार, आचार और नैतिक) नियमन, 2002 में संशोधन किया जिसमें एक नया अनुच्छेद 6.8 शामिल किया गया। इस अनुच्छेद के मुताबिक किसी चिकित्सक को उद्योग की किसी दवा अथवा उत्पाद को सार्वजनिक तौर पर विज्ञापित नहीं करना चाहिए। इन नियमों के अलावा सरकार ने समय-समय पर केन्द्र सरकार के अस्पतालों, सीजीएचएस डिस्पेन्सरियों तथा राज्य सरकारों में कार्यरत चिकित्सकों को जहां तक संभव हो, मरीजों को जेनरिक दवाएं देने संबंधी परिपत्र/निर्देश जारी किए हैं। 

केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कल राज्य सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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