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(मायावती आज़, इन्दिराजी के बाद; देश की आशा बनीं)।


लोकसभा चुनाव के लिए; रणनीति निरर्थक।


  स्वतंत्र पत्रकार :- ज.सं. संजीव कुमार बड़ोनी।
मनुस्मृति के व्याख्यान व छन्द, दोहे, पद्य, गद्य, सवैये, सोरठे, समास सब कुछ; संभवतया बहुत ही पुरानी, सड़ी-गली धार्मिक रुढ़ीवाद की विश्वासी विचारधारा के समय पर; उत्पन्न हो सके हैं। तब की उस, आईडियोलोज़ी पर, धर्मान्ध अंधेर के कुएं से, बाहर आती हुई, अज्ञानता वाली रोशनी की किरणों से, यह बोध ज्ञान प्राप्त हो सका था, कि जन्मने जायते शुद्रः, कर्मणे जायते द्वीजः। क्या संस्कृत का, यही कड़वा सुभाषितानी, एक सूत्रवाक्य के रुप में; वर्तमान की इक्कसवीं सदी के भीतर, भारतीय संविधान का अभिन्न हिस्सा बन सकता है। इस, अति कटु कटाक्ष के उत्तर, यही हैं कि कदापि नहीं क्योंकि अब जो, स्वीकार्य सूत्रवाक्य; भारतीय संविधान का, अभिन्न हिस्सा होगा; वह यह है कि जन्मने जायते जीवानाः; कर्मणे जायते नराः (जन्म से, सभी प्रकारीय प्राणी, एक जैसे ही, जन्म लेते है; किन्तु, सभी प्राणीयों में, बुद्धिमान इंसान को भी; उसके जन्मीय आधार पर नहीं, अपितु कर्मिय आधार पर, जाना जा सकेगा। अगर भारत वास्तव में, इस इक्कसवीं सदी के अन्दर, पूरी दुनिया में, अपनी आवाज पहुँचाना चाहता है; तो उसे जाति, धर्म, क्षेत्र, बोली, भाषा, ईत्यादी, बाध्यताओं (कम्पलशन्स्) से बाहर आना ही होगा।

वर्ष दो हजार उन्नीस के, लोकसभायी चुनाव के लिए, मेरे देश की, सम्मानित एवं बद्धिमान जनता को, अपनी भावुकता (इमोशनैलिटी) पर नियंत्रण रखकर, अपने दिमाग और दिल की, संयुक्त पहल के साथ; आगे आना होगा। इस प्रयास के चलते हुए, वे कश्मीर टू कन्याकुमारी के लिए, एक ऐसी सरकार चुन सकेंगे; जो कि सोशल इंज़ीनियरिंग, चुनावी रणनीति एवं बढ़िया बूथ लेविल मैनेजमेन्ट से इतर, मात्र दलित, दलन एवं गलन के दम पर ही, चुनाव जीतकर देश को, सर्वोत्कृष्ट कानून व्यवस्था एवं सर्वश्रेष्ठ विकास दे सकेंगे। पहले बहुजन समाज पार्टी केवल और केवल, दलितों की पार्टी, हुआ करती थीं; लेकिन, आज़ जब समय ने करवट बदली तो, राजनीति में ऐसा मोड़ आया कि अब, बसपा एक सर्वसमावेशी, सर्वमान्य, पार्टी बनने जा रही है। जिस पर, देश के सभी वर्णों में, फैली हुई सवर्ण जातियाँ इसलिए भरोसा कर रही हैं, क्योंकि बहन जी (माननीया मायावती) सवर्ण जातियों में, दबे, कुचले, वंचित, पीड़ित, शोषित, सताए हुए, रुलाए हुए, दबाये हुए, डराए हुए, चूसे-निचोड़े हुए, धबराए हुए तथा वंचित, समानान्तर सामंती सिस्टम से, परेशान गरीब ब्राहमण अब, बहन जी (माननीय मायावती) पर, भरोसा कर रहे हैं। सवर्ण जातियों के गरीब सुदामा पंड़ित व अन्य गरीब व्यक्ति (महिला-पुरुष) इसलिए माननीय मायावती पर, भरोसा कर रहे हैः क्योंकि आज, बसपा अपने अतीतकालीन दलित नेतृत्व से बाहर आकर, वर्तमान में इसके अन्दर मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टी एवं भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी की गरीब, मजबूरों तथा शोषितों के हित में, कार्य करने वाली नीतियाँ, खूब अन्दर तक, पहुँच गयी है। दूसरी ओर, यह पार्टी बसपा अल्पसंख्यकों के लिए, पूरे जमीनी आधार के साथ; कार्य कर रही है। जिससे कि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान, पूरे देश में, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, बसपा की ओर, बढ़ रहा है क्योंकि मुस्लिम मतदाता, बड़ी गहराई के साथ सोचकर, यही समझ रहा है कि बहन जी की पार्टी, अन्य पार्टियों के समान, मुस्लिम वोटर्स को, सिर्फ़ अपना वोट बैंक मानने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि, बहन जी की पार्टी, सभी मुस्लिम भाईयों के लिए, कश्मीर टू कन्याकुमारी आगे बढ़ने एवं उनकी प्रगति की, निष्पक्ष तथा निर्बाध सोच रखती है। दूसरी ओर, बहन जी माननीय (स्वर्गीय) लाल बहादुर के समान, गुदड़ी की लाल हैं; तेज़-तर्रार प्रशासक और शासक हैं। कश्मीर टू कन्याकुमारी देश को, सबसे अच्छी कानून व्यवस्था देंगी, जो वर्तमान की कानून व्यवस्था से, कई गुणा बेहतर होगी। बहन जी के शासन काल में, कश्मीर टू कन्याकुमारी, हिमालयी राज्यों का विकास, तेज़ रफ़्तार के साथ होगा, जिसे कि दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कहा जायेगा। बहन जी, जब समूचे उत्तर प्रदेश (अविभाजित उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री थीं; तो उन्होंने उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड़ तक खूब अधिक संख्या में; ब्लॉक, तहसील और जिलों का निर्माण कराया था। जिसके प्रमाण, तत्कालीन एम.एल.ए. व एम.एल.सी. के पास मौजूद हैं, जबकि वे उत्तर प्रदेश की, मुख्यमंत्री थीं। संयुक्त उत्तर प्रदेश की, मुख्यमंत्री रहकर, उन्होंने उत्तराखण्ड़ में, जो तहसीलें बनायीं; उससे जनता को बड़ी सुविधा हुई, अन्यथा जनता को एक फ़रद लेने के लिए, कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। अपनी अच्छी प्रशासकीय-शासकीय व राजनैतिक छवि के कारण ही, उनसे अभिभूत होकर माननीय अटल बिहारी भाजपई ने, उन्हें उत्तर प्रदेश में, अपनी पार्टी का समर्थन देकर, उनकी पार्टी की सरकार बनायीं व वे उत्तर प्रदेश की, एक सफ़ल मुख्यमंत्री बनीं।

किन्तु, कांग्रेस पार्टी को, मुस्लिम वोटर दो बातों के चलते हुए, कश्मीर टू कन्याकुमारी बसपा के मुकाबले, कमतर आँकने लगा है क्योंकि एक तो बीते हुए वर्षो में, तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो प्रकरण पर, माननीय राजीव गाँधी द्वारा, मद्रास हाईकोर्ट की, तत्कालीन न्यायाधीश, न्यायमूर्ति फ़ातिमा बीबी के आदेश को, केवल इसलिए पलटा गया था; जिससे कि मुस्लिम वोट बैंक पर, कब्ज़ा जमाया जा सके। इससे एक कदम, आगे बढ़कर, माननीय राहुल गाँधी ने अपने हालिया राजनैतिक बयान में, जिसका ज़िक्र प्रिंट-इलैक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा, स्पष्ट हुआ कि माननीय राहुल गाँधी जी ने, अयोध्या में प्रस्तावित राम मन्दिर के निर्माण पर, चुप्पी साधकर, मुस्लिम भाईयों का संभवतया इसलिए साथ दिया; जिससे उनके मुस्लिम भाईयों का वोट बैंक फ़िक्स डिपोजिट में, रह सके। यही बात, एक टी.वी. चैनल में, किसी मुस्लिम लीडर ने कही थी, कि माननीय राहुल गाँधी को, राम मन्दिर की कम, किन्तु मुस्लिम वोट बैंक की, ज़्यादा चिन्ता हो रही है। माननीय राहुल गाँधी के, इस राजनैतिक बयान में, विरोधाभास (कंट्रॉडिक्शन) इसलिए छलक उठता है, क्योंकि स्वर्गीय राजीव गाँधी एवं स्वर्गीय नरसिम्हा राव ने, अपनी-अपनी प्राईम मिनिस्टरशिप के दौरान; अयोध्या स्थित राम मन्दिर परिसर में, पूजा-अर्जना यथावत जारी रखी थीं; तो आज अचानक राम मन्दिर पर, माननीय राहुल गाँधी जी के सुर बदलना, मुस्लिम भाईयों के दिलो में, पूरे देश में, कश्मीर टू कन्याकुमारी, शक जन्म ले रहा है कि कहीं माननीय राहुल गाँधी जी की नज़र, केवल उनके वोट बैंक पर ही, तो नहीं है। यही कारण है कि आज़ सभी, मुस्लिम भाई गुपचुप ढ़ग से, बसपा की ओर रुख करने लगे है। दूसरी ओर, राहुल गाँधी जी ने, पिछले दिनों संसद के अन्दर, आँख मारने (विन्कींग) का काम किया था, जो कि संसद की गरिमा के खिलाफ है। ऐसा ही, मीडिया के माध्यम से, पूरे देश-दुनिया ने पढ़ा, देखा और सुना था। जैसे-जैसे, समय की सुईयाँ चुनावी घड़ी की ओर बढ़ रही हैं; पूरा धर्मनिरपेक्ष-सेक्युलर भारत, बहन जी, की कंटीली राहों को, आसान बना रहा है। भारत, माननीय मायावती जी में, स्वर्गीय इंदिरा गाँधी जी जैसी, कुशल शासक-प्रशासक और कठोर निर्णय लेने वाली, प्रधानमंत्री की छवि देख रहा है। पूरा भारत, घर के भीतर व बाहर सीमाओं पर , सुरक्षित, खूब विकसित बने एवं भारतीय जनता, उनसे यही अपेक्षा कर रही है कि वे, अपनी राजनैतिक सूझबूझ और डिप्लोमेसी के बलबूते पर, कश्मीर समस्या बड़ी आसानी-सावधानी के मेल से, आश्चर्यजनक ढ़ग से, हलकर वहाँ, पहले पॉच साल, बसपा की सरकार; क्षेत्रीय पार्टीयों के साथ व बाद में; अपनी पार्टी की, फुल मेजोरिटी वाली, सरकार बनाएगी। बहन जी के शासनकाल में, भारत को पूर्ण विश्वास है कि वे, उस पाक अधिकृत कश्मीर-पी.ओ.के. को भी, भारतीय भू-भाग में, मिला सकने की, यथासंभव कोशिश कर सकेंगी कि जिसमें पाकिस्तान सशंकित आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों की गतिविधियाँ संचालित करता रहा है। इन प्रशिक्षण शिविरों की खबरें, पिछले दिनों, भारतीच सैन्य प्रशासन ने संयुक्त मीडिया के द्वारा, सार्वजनिक कीं। अब, हिन्दी-अंग्रेजी भाषा पर, चर्चा हो तो बहन जी अगर, किसी देहाती बोली में भी, बोलें तो अब, सूचनाक्रान्ति के दौर में, दुनिया की किसी भी, भाषा को, कई-कई भाषाओं में, बदलने अनुवाद ट्राँसलेशन-इन्टरप्रिटेशन की सुविधाएं है; ऐसे कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर तो हैं ही; साथ में दुभाषिये (इन्टरप्रेटर) की व्यवस्था, किसी व्यक्ति के, इन्टरप्रिटेशन से होगी। वर्ष उन्नीस सौ अट्ठासी में, संयुक्त रुस (यू.एस.ए.आर.) से राष्टपति मिख़ाईल गौर्बाचेव जब भारत आए, तो उन्होंने स्वयं रुसी भाषा में भाषण दिया, जिसको कि भारत ने दुभाषिये इन्टरप्रिटेशन के जरिये समझा। जबकि, उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, स्वर्गीय राजीव गाँधी से, हिन्दी में भाषण देने का, सुझाव रखा। उत्तराखण्ड में, अट्ठारह वर्षो से, भाजपा-कांग्रेस बारी-बारी से, शासन करती रहीं व मक्खन की टिकिया के आशंकित लोभ हेतु, यू.के.डी. (क्षेत्रीय दल) ने, दोनों पार्टियों को समर्थन दिया; लेकिन, भाजपा, कांग्रेस, यू.के.डी. ने, उत्तराखण्ड बनने के बाद, नये जिले बनाने में जनता की चिल्लाहट और अत्यधिक आवश्यकता होने पर भी, गम्भीर रुचि न लेकर, जनता को खूब परेशान किया। जिस दस फ़ीसदी आर्थिक आरक्षण पर, भाजपा अपनी पीठ खुद ही, थपथपा रही है; वही आर्थिक आधारीय आरक्षण, आगामी लोक सभा चुनाव में, भाजपा के गले की ठोस फाँस तैयार करेंगा क्योंकि उसमें कश्मीर टू कन्याकुमारी, पुनरावलोकन-रिव्यू की सख़्त आवश्यकता थीं। भाजपा ने, अपने राजनैतिक लाभ हेतु, आर्थिक स्तरीय आरक्षण के लिए, आनन-फ़ानन में, लोक सभा –राज्य सभा से, बिल पास कराकर, तब उसे महामहीम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से, कानूनी स्वरुप में, जनता के समक्ष, वोट पाने के लोभ में, पेश किया। किन्तु, संयुक्त विपक्ष मज़बूरन इसलिए चुप रहा, क्योंकि वे, आर्थिक आधारीय आरक्षण के, शुरु से ही, पक्षधर रहे एवं उनकी, इसी पुरानी चिरस्थायी उद्घोषणा का लाभ लेकर, भाजपा ने संयुक्त विपक्ष पर, पर्दे के पीछे से, अंधेरे में, मनोवैज्ञानिक-साईकोलोज़ीकल दबाव बनाया। लेकिन, इस ज़ल्दबाज़ी में, भाजपा से, एक गम्भीर भूल हो गयी क्योंकि संवैधानिक परम्परा-चेष्टा के प्रतिकूल, पुरानी आरक्षणीय परिपार्टी के अन्दर ही, दस फ़ीसदी आर्थिक आरक्षण की, व्यवस्था की गयी। परन्तु, पिछले दिनों दायर एक राष्ट्रीय जनहित याचिका पर, फ़ैसला देने से पहले, सुप्रीम कोर्ट की, खंडपीठ राष्ट्रहित में, एक रिव्यू कमेटी अवश्य गठित करेगी, जो तब तक, पुराने आरक्षण को, यथावत् रखेगी, जब तक कि पुनर्समीक्षा के बाद, कुल नया आरक्षण, उननचस दशमलव पाँच प्रतिशत तक की, परिसीमा के भीतर ही, न रहे। अन्यथा, एस.सी.-एस.टी. व अन्य जातियाँ , इस इकनोमिकल बेस्ड् रिज़रवेशन को, अपने अधिकार क्षेत्र में, भाजपा का राजनैतिक अतिक्रमण मानेंगी क्योंकि यह, देश की संधीय व संवैधानिक परम्परा से, घोर उलट है। वर्ष दो हज़ार चौदह के, गोदरा-गुज़रात की हिंसक घटना में, सुप्रीम कोर्ट पर, सशंकित भयानक व असाधारण दबाव रह सका था। जिसमें कि आई.पी.एस. संजीव भट्ट की दलील निष्पक्ष, न्यायोचित, जनहित में थीं। उत्तराखण्ड में, भाजपाई शासन ने, उत्तराखण्ड हाईकोर्ट पर, शंकावान् और कानूनी दबाव डालकर, मेहनती किसानो की, कुल उन्नवे ग्राम पंचायतें, ज़बरन देहरादून नगर निगम में, उनकी बार बार विनती के बाद भी, मिलायीं।


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