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चेक बाउनस मामले की प्रक्रिया का विवरण


 abslm  25/11/2019                             कानूनी सलाह 



 अरविंद राठोड वकील और सोलिसिटर (मुंबई)


आधुनिक समाज की व्यापारिक प्रणाली मे चेक बाउनस एक महज आम बात है इसलिए सर्वसाधारण जनता के सूचनार्थ एवं जानकारी के लिए इस लेख के माध्यम से मैं चेक बाउनस मामलों से संभधित न्यायिक प्रक्रिया एवं निर्देशों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ जो की निम्नलिखित है -
1) सर्वप्रथम चेक बाउनस होने की दशा मे मामला नेगोशीयबल इन्स्ट्रुमेंट एक्ट,1881, धारा-138 के अंतर्गत दर्ज किया जाता है। इस धारा मे चेक बाउनस को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अपने किसी कर्ज या अन्य देय का भुगतान करने के उद्देश से यदि किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को चेक जारी करता है और यह चेक यदि उनके बैंक के द्वारा निम्न कारणोसे वापस कर दिया जाता है-
) खाते मे पर्याप्त धन का होना,
) खाते के प्रकार के अनुरूप देय धनराशि का होना,
) न्यायालय के आदेशो के अनुरूप अन्य कारणो को  संज्ञान मे लेना,
उपरोक्त परिस्थितियोमे चेक जारी करने वाले व्यक्ति को उपरोक्त धारा के अंतर्गत चेक बाउनस के गुनाह का आरोपी समझा जाएगा। जिसके निस्तारण के लिए आरोपी को यदि वह गुनहगार साबित होता है,  दो साल तक का कारावास अथवा आर्थिक दंड जो की चेक की राशि से दुगना राशि का हो सकता है या न्यायालय दोनों तरह की सजा का आदेश दे सकती है।
2) चेक बाउनस  के मामले को इनहि निम्नलिखित दशाओ मे ही नेगोशीयबल इन्स्ट्रुमेंट एक्ट,1881  की धारा -138 के अंतर्गत न्यायालय द्वारा संज्ञान मे लिया जाएगा-
) जारी किया हुआ चेक तीन महीने के अंदर बैंक मे भुगतान के लिए प्रदर्शित किया गया हो।
) चेक धारक द्वारा चेक बाउनस होने की जानकारी के 30 दिनों के अंदर लिखित पत्र द्वारा चेक जारी करने वाले व्यक्ति को सूचित करना,
) पत्र मिलने के पश्चात यदि चेक जारी करने वाला व्यक्ति 15 दिनों के अंदर चेक धारक को देय राशि का भुगतान करना,
उपरोक्त परिस्थितियोंमे धारा -142 के अंतर्गत चेक धारक देय धनराशि का भुगतान मिलने पर मजिस्ट्रेट  न्यायालय के समक्ष अर्जी दायर कर सकता है परंतु यह अर्जी उपरोक्त 2 () मे प्रदत्त समय सीमा खत्म होने की तिथि से अगले एक महीने के अंदर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होनी चाहिए। परंतु यदि किन्ही भी दशाओं मे चेक धारक उपरोक्त एक महीने की तय समय सीमा के अंदर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं होता है तो भी न्यायालय चेक धारक द्वारा दिये गए प्रासंगिक कारणो एवं उसकी असमर्थता को संज्ञान मे लेकर धारा-142 () के अंतर्गत तय समय सीमा के पश्चात भी चेक धारक की अर्जी स्वीकार कर सकती है।
मैं आपको यह भी जानकारी देना चाहता हु की अगर किसी कारण वश चेक धारक चेक बाउन्स के 30 दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले को लिखित सूचना () नहीं दे पता ऐसे हालात मे चेक धारक वह चेक पुनः बैंक मे प्रस्तुत कर सकता है और चेक दोबारा बाउन्स होने के 30 दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले को लिखित सूचना दे सकता है बसरते की चेक दोबारा चेक वैधता अवधि के भीतर बैंक मे प्रस्तुत किया गया हो।
जय जिनेन्द्र |


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