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बुध-शनि युति से व्यक्ति लेखन कार्य में रूचि लेता है।


 

बुध व शनि मित्रग्रह हैं। इनकी युति-प्रतियुति या केंद्र योग शुभ फल देने वाला होता है। ये व्यक्ति सुलझी हुई व गहरी सोच रखने वाले होते हैं। हर बात को विचार कर फिर कहना इनके स्वभाव में होता है।

इस युति के प्रभाव से व्यक्ति लेखन कार्य में रूचि लेता है। उपन्यासकार, इतिहासकार, प्रकाशक, संशोधक, आलोचक, भाषा शिक्षक व लेखकों आदि की पुंडली में यह युति प्रमुखता से देखने में आती है। ये व्यक्ति व्यावसायिक बुद्धि भी रखते हैं। अतः लिखे गए साहित्य को प्रकाशित कैसे किया जाए, यह जुगत लगाने में भी कुशल होते हैं।

समाज में इन व्यक्तियों को मान-सम्मान मिलता है।

 हाँ, धन की आकस्मिकता रह सकती है। यदि बुध-शनि पर पाप प्रभाव हो तो कार्यों में विलंब तथा श्रवण व वाणी दोष संभव है। ऐसे में बुध व शनि को मजबूत करने के उपाय करना चाहिए।

विशेष बुध-शनि युति यदि शुभ हो तो इन व्यक्तियों को साढ़ेसाती काल में अत्यंत शुभ फल मिलते हैं।

पुंडली के बारह भाव और बुध

1.जिस जातक के लग्न में बुध होता है वह अपने पूरे जीवन को व्यवस्थित करता हुआ उन्नति की ओर अग्रसर होता है। उसकी बुद्धि श्रेष्ठ होती है।

उसका शरीर स्वर्ण के समान कांतिवाला और वह प्रसन्नचित्त प्राणी होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, गणितज्ञ, विनोदी, उदार व मितभाषी होता है।

2.दूसरे भाव में हो तो वह बुद्धिमान तथा परिश्रमी होता है। सभा आदि में भाषण द्वारा वह जनता को मंत्रमुग्ध कर सकता है।

3.तीसरे भाव में हो तब ऐसा व्यक्ति व्यापारी से मित्रता स्थापित करने वाला होता है। व्यापारादि कार्यों में उसकी बहुत रुचि होती है।

4.चौथे भाव में हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है। राज्य में उसकी प्रतिष्ठा तथा मित्रों से सम्मान होता है।

5.पांचवे भाव में हो तो उसे संतान सुख का अभाव रहता है। यदि होता भी है तो वृद्धावस्था में पुत्र लाभ प्राप्त होता है।

6.छठे भाव में हो तो उसका अन्य मनुष्यों के साथ विरोध रहता है।

7.सातवें भाव में हो तो वह स्त्राr के लिए सुखदायक होता है।

8.आठवें भाव में हो तो उस व्यक्ति की उम्र लंबी होती है। यह देश-विदेश में भी ख्याति लाभ दिलाता है।

9.नौवें भाव में हो तो मनुष्य धार्मिक कार्यों में रुचि लेने वाला, बुद्धिमान, तीर्थ आदि करने वाला होता है। तथा घर का कुलदीपक भी होता हैं।

10.दसवें भाव में हो तो ऐसा जातक पिता द्वारा अर्जित धन प्राप्त करता है।

11.ग्यारहवें भाव में हो तो वह व्यक्ति को बहुत सारी संपत्ति का मालिक बनाता है। ऐसा व्यक्ति लेखक या कवि भी होता है।

12.बारहवें भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति विद्वान होते हुए भी आलसी होता है।

1.लग्न में शनि मकर तथा तुला काहो तो जातक धनाढ्य, सुखी और अन्य राशियों का हो तो दरिद्रवान होता है।

2.दूसरे भाव में हो तो कटुभाषी और पुंभ या तुला का शनि हो तो धनी, कुटुंब तथा भ्रातृवियोगी, लाभवान होता है।

3.तीसरे भाव में हो तो निरोगी, योगी, विद्वान, चतुर, विवेकी, शत्रुहंता होता है।

4.चौथे भाव में हो तो बलहीन, अपयशी, शीघ्रकोपी, धूर्त, भाग्यवान होता है।

5.पांचवें भाव में हो तो वात रोगी, भ्रमणशील, विद्वान, उदासीन, संतानयुक्त एवं चंचल होता है।

6.छठे भाव में शनि हो तो शत्रुहंता, कवि, भोगी, कंठ व श्वांस रोगी, जातिविरोधी होता है।

7.सातवें भाव में हो तो ाढाsधी, धनहीन, सुखहीन, भ्रमणशील, स्त्राrभक्त, विलासी एवं कामी होता है।

8.आठवें भाव में हो तो कपटी, वाचाल, डरपोक, धूर्त एवं उदार प्रवृत्ति का होता है।

9.नौवें भाव में हो तो प्रवासी, धर्मात्मा, साहसी, भ्रातृहीन एवं शत्रुनाशक होता है।

10.दसवें भाव में हो तो नेता, न्यायी, विद्वान, ज्योतिषी, अधिकारी, महत्वाकांक्षी एवं धनवान होता है।

11.ग्यारहवें भाव में हो तो दीर्घायु, चंचल, शिल्पी, सुखी, योगी, पुत्रहीन एवं व्यवसायी होता है।

12.बारहवें भाव में शनि हो तो जातक व्यसनी, दुष्ट, कटुभाषी, अविश्वासी, मातृ कष्टदायक, अल्पायु एवं आलसी होता है।


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