(खग्रास
चन्द्रग्रहण : 17 जुलाई ) भूभाग
में ग्रहण–समय : 17 जुलाई को रात्रि 01:31 से प्रात: 04:30 तक ( पूरे भारत में दिखेगा, नियम पालनीय )
✔ करने योग्य
1. ग्रहण के समय
भगवान का चिंतन, जप, ध्यान करने पर उसका लाख गुना फल मिलता है ,
ग्रहण के समय हज़ार काम छोड़ कर मौन और जप करिए
l
2. ग्रहण लगने के
पहले खान - पान ऐसा करिए कि आपको बाथरूम में ना जाना पड़े l
ना करने योग्य
1. ग्रहण के समय सोने से रोग बढ़ते हैं l
2. ग्रहण के समय सम्भोग करने से सुअर की योनि मिलती है l
3. ग्रहण के समय मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए, दरिद्रता आती है l
4. ग्रहण के समय धोखाधड़ी और ठगाई करने से सर्पयोनि मिलती है l
5. ग्रहण के समय शौच नहीं जाना चाहिए, वर्ना पेट में कृमि होने लगते हैं l
6. ग्रहण के समय जीव-जंतु या किसी की हत्या हो जाय तो नारकीय
योनि में जाना पड़ता है l
7. ग्रहण के समय भोजन व मालिश करने वाले को कुष्ट रोग हो जाता
है l
8. ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए l
9. स्कन्द पुराण के अनुसार ग्रहण के समय दूसरे का अन्न खाने से
१२ साल का किया हुआ जप, तप, दान स्वाहा हो जाता है l
10. ग्रहण के समय अपने घर की चीज़ों में कुश, तुलसी के पत्ते अथवा तिल डाल देने चाहिए l
11. ग्रहण के समय रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप नाश हो
जाते हैं l
12. ग्रहण के समय दीक्षा अथवा दीक्षा लिए हुए मंत्र का जप करने
से सिद्धि हो जाती है l
गुरु का मानस-पूजन कैसे करें गुरु पूर्णिमा को 🌷
गुरुपूनम की सुबह उठें । नहा-धोकर थोडा-बहुत धूप, प्राणायाम आदि करके श्रीगुरुगीता का पाठ कर लें
।
फिर इस प्रकार मानसिक पूजन करें 🌷
मेरे गुरुदेव !
मन-ही-मन, मानसिक रूप से मैं आपको
सप्ततीर्थों के जल से स्नान करा रहा हूँ । मेरे नाथ ! स्वच्छ वस्त्रों से आपका
चिन्मय वपु (चिन्मय शरीर) पोंछ रहा हूँ । शुद्ध वस्त्र पहनाकर मैं आपको मन से ही
तिलक करता हूँ, स्वीकार कीजिये ।
मोगरा और गुलाब के पुष्पों की दो मालाएँ आपके वक्षस्थल में सुशोभित करता हूँ ।
आपने तो हृदयकमल विकसित करके उसकी सुवास हमारे हृदय तक
पहुँचायी है लेकिन हम यह पुष्पों की सुवास आपके पावन तन तक पहुँचाते हैं, वह भी मनसे, इसे स्वीकार कीजिये । साष्टांग दंडवत् प्रणाम करके हमारा
अहं आपके श्रीचरणों में धरते हैं ।
हे मेरे गुरुदेव ! आज से मेरी देह, मेरा मन, मेरा जीवन मैं
आपके दैवी कार्य के निमित्त पूरा नहीं तो हररोज २ घंटा, ५ घंटा अर्पण करता हूँ, आप स्वीकार करना । भक्ति, निष्ठा और अपनी अनुभूति का दान देनेवाले देव ! बिना माँगे
कोहिनूर का भी कोहिनूर आत्मप्रकाश देनेवाले हे मेरे परम हितैषी ! आपकी जय-जयकार हो
।’
इस प्रकार पूजन तब तक बार-बार करते रहें जब तक आपका पूजन
गुरु तक, परमात्मा तक नहीं पहुँचे
। और पूजन पहुँचने का एहसास होगा, अष्टसात्त्विक
भावों (स्तम्भ १ , स्वेद २ ,
रोमांच, स्वरभंग, कम्प, वैवण्र्य ३ , अश्रु, प्रलय ४ ) में से
कोई-न-कोई भाव भगवत्कृपा, गुरुकृपा से आपके
हृदय में प्रकट होगा ।
इस प्रकार गुरुपूर्णिमा का फायदा लेने की मैं आपको सलाह
देता हूँ । इसका आपको विशेष लाभ होगा, अनंत गुना लाभ होगा ।
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