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जीएसटी सुधार कांग्रेस के दबाव में लिया गया फैसला : अशोक बुवानीवाला

भिवानी, 5 सितम्बर2025।

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस उद्योग सैल के चेयरमैन अशोक बुवानीवाला ने जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में वित्त मंत्री द्वारा जीएसटी स्लैब को 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत करना केन्द्र सरकार का देर से उठाया गया कदम बताया है। माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में सुधारों को लेकर उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को आखिरकार नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा 8 वर्ष पहले दिया गया सुझाव मानना पड़ा है। कांग्रेस पार्टी लंबे समय से जीएसटी सुधारों की वकालत करती रही है कि दरों की संख्या घटाए, बड़े पैमाने पर उपभोग होने वाली वस्तुओं पर टैक्स की दरें कम करे, टैक्स चोरी, गलत वर्गीकरण और विवादों को न्यूनतम करे, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (जहां इनपुट पर आउटपुट की तुलना में अधिक टैक्स लगता है) समाप्त करे, एमएसएमई पर प्रक्रियागत नियमों का बोझ कम करे और जीएसटी के दायरे का विस्तार करे। उन्होंने कहा कि जीएसटी का मौजूदा डिजाइन और आज तक जारी रहीं दरें पहले ही तय नहीं की जानी चाहिए थीं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में जीएसटी के डिजाइन और दरों के खिलाफ पिछले 8 वर्षों से जोर-जोर से आवाज उठा रही है, लेकिन केन्द्र सरकार अपनी मनमानी के चलते उनकी मांग को अनदेखा करती रही है और आज सुस्त विकास, बढ़ता घरेलू कर्ज, गिरती घरेलू बचत, बिहार में चुनाव, ट्रंप और उनके टैरिफ चलते उन्हें कांग्रेस पार्टी के सामने झुकना पड़ा है।

बुवानीवाला ने कहा कि अभी भी जीएसटी में खामियाँ है। मौजूदा हालात में भी एक ही कैटेगरी की चीजो पर टैक्स रेट अलग-अलग देना पड़ता है जिससे उलझन होती हैं साथ ही तैयार माल जीएसटी कम होने पर भी महँगा होता है। उदाहरण के तौर पर महिलाओं के इस्तेमाल में सैनिटरी नैपकिन का इंडिविजुवल बेसिस पर कच्चा माल पर टैक्स रेट ज्यादा है ओर तैयार माल पर कम जिसके कारण फाइनल तैयार मॉल महँगा मिलता है। उन्होंने कहा कि सरकार की ये दोहरी नीति देश के एमएसएमई की कमर तोड़ देगी।

बुवानीवाला ने तंज कसते हुए कहा कि जीएसटी परिषद की बैठक से पहले ही प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2025 के अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में इसके निर्णयों की घोषणा कर दी थी। क्या जीएसटी परिषद अब केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है? या फिर उनकी मंशा अपने चुनिंदा उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचाने की थी। क्योंकि उदाहरण के तौर पर जीएसटी घटने से पहले ही सीमेंट कंपनियों ने दाम इतना बढ़ा दिया कि कोई फर्क न पडे। यानी सीमेंट के दामों में नये जीएसटी रेट से जितनी कमी होती, बड़ी सीमेंट कम्पनियों ने दाम में उतनी ही बढोत्तरी सप्ताह भर पहले ही कर ली थी। 

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